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ये भकुए न हसोड़ हैं न मसखरे ये 'भसोड़' हैं।भसोड़ यानी जिनके दिमाग में भरा हो भूसा

आप कहे भीतर गई ,जूती खात कपाल ,

'ये -चुरी ' न सीताराम की ,गली ,गली में दाल.


गली ,गली में दाल ,किसानों की है रैली ,


सभी बजाते गाल ,विपक्षी नीयत मैली।


ले किसान का नाम ,रोटियां नेता सेकें।


करके इस्तेमाल ,उन्हें खेतों में फेंके। .........(कविवर मित्र रविकर भाई )


सबद सम्हारे बोलिये ,सबद के हाथ न पाँव ,

एक सबद औषध करे ,एक सबद करे घाव। 


आप कहे भीतर गई ,जूती खात  कपाल। 


आप कहे भीतर गई ,जूती खात कपाल ,


'ये -चुरी ' न सीताराम की ,गली ,गली में दाल.


गली ,गली में दाल ,किसानों की है रैली ,


सभी बजाते गाल ,विपक्षी नीयत मैली।


ले किसान का नाम ,रोटियां नेता सेकें।


करके इस्तेमाल ,उन्हें खेतों में फेंके।




'ये -चुरी' नहीं 'या -चोर 'है ये जो पी एम् का अर्थ पॉकिट मार बतलाता है। 


ये कामोदरी और लिंगोदरी मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम ,भकुए नहीं जानते के सनातन नामों को ओढ़े हुए अपने नामों पर भी ये शर्मिंदा हैं क्यों इनके माँ बाप ने इनका नाम सेकुलर 'सीता -राम ' रखा।


 हम नहीं चाहते ,भारत धर्मी समाज का कोई भी प्राणि नहीं चाहता आगे चलकर इनको जूते पड़ें और ये कहें :


"आप कहे भीतर गई ,जूती खाई कपाल 


तीन शब्दों से आप वाकिफ हैं दोस्तों :हसोड़ ,मसखरा और भसोड़ 


इनमें से हसोड़ वह होता है जो यह जानता है के वह दूसरों पर  हँस रहा है 


मसखरा वह होता है जो अपने कपडे फाड़ के खुद पे हँसता है 


ये भकुए न हसोड़ हैं न मसखरे ये 'भसोड़' हैं।भसोड़ यानी जिनके दिमाग में भरा हो भूसा 


मूर्धन्य वह होता है जो बहुत ऊंचाई पर बैठा होता है और मूढ़ -धन्य वह जो बहुत नीचे गिर चुका होता है। 


इनमें से पहले व्यक्ति के तौर पर शरद पंवार का नाम लिया जा सकता है जो हालांकि लकवा ग्रस्त हो गए थे लेकिन अंदर से संयत हैं  अपभाषा का प्रयोग नहीं करते।  


मसखरे से आप सब वाकिफ हैं -जी हाँ अपने शहज़ादे नेहरुपंथी कांग्रेस में अपशिष्ट। 


और मूड़धन्य ये -ये -चोरी है। 


कबीर दास  ऐसे लोगों को चेताते हुए ही लिख गए हैं :


मन उन्मना न तौलिए ,शब्द के मोल न तोल ,


मूर्ख लोग न जानसि ,आपा खोया बोल। 



When your mind is raged then you should not react to the words. One does not have any means for the valuation and weight of words. The fools do not understand this and lose their balance while talking.


पहले शब्द पहचानिये ,पीछे कीजे मोल ,


पारखी परखे रतन को ,शब्द का मोल न तोल। 



First you should understand what has been said by others. Then you can make the valuation of the words that you have listened. A goldsmith can test the purity of gold. One does not have any means for the evaluation and weight of words.


सन्दर्भ : सन्दर्भ दोस्तों दिल्ली में २४ राज्यों से आये किसान भाइयों का प्रदर्शन था जो अपने कृषि  उत्पादों  का उचित मूल्य निर्धारण करवाने के लिए एक नियम बनाने की मांग  लेकर  आये थे। चाहिए तो ये था उनमें से कुछ लोगों की पीड़ा को पहचानकर उन्हें ये राजनीति के ये -चारि और भरम -चारि ,धंधे बाज मंच पर आगे लाते ,ये खुद ही अपनी औकात बताने पर उतर  आये।राजनीति के इन छछूंदरों को ही समर्पित है ये पोस्ट। इति !जयश्रीकृष्ण ! 





मन उन्मना न तोलिये, शब्द के मोल न तोल |
मुर्ख लोग न जान्सी, आपा खोया बोल ||
When your mind is raged then you should not react to the words. One does not have any means for the valuation and weight of words. The fools do not understand this and lose their balance while talking.



        पहले शब्द पहचानिये, पीछे कीजे मोल |

     पारखी परखे रतन को, शब्द का मोल ना तोल || 

First you should understand what has been said by others. Then you can make the valuation of the words that you have listened. A goldsmith can test the purity of gold. One does not have any means for the evaluation and weight of words.

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