यहां मेरा एक आशियाना था जब भी मन वर्तमान की विसंगतियों से थक जाता था ,यहां भाग आता था बेंगलुरु। इस बार भी यही हुआ था मुंबई सेंट्रल से उद्यान एक्सप्रेस पकड़ी थी और येलाहंका स्टेशन पर उतर गया था ,हाथ में आपके वाल्किंग स्टिक हो तो मददगार मिल ही जाते हैं ।मेरा ट्रेवेलाइट एक फौजी ने पकड़ा दिया था। आँखें शेखर भाई को ढूंढ रही थीं हालांकि उस छोटे से स्टेशन पर उतरने वाले इक्का दुक्का ही होते हैं। गाड़ी रुकी तो वह सामने थे मैंने देखा एक लम्बी वेणी रख ली है शेखर जैमिनी ने (शेखर जी )ने वजन भी खासा बढ़ा हुआ दिखा था। कब उन्होंने छोटी सी ट्रॉली कर ली पता ही नहीं चला। नज़रे उस छोटी सी गाड़ी को ढूंढ रही थीं जिसमें मंजुनाथ नगर की विजिट्स में मैं कई मर्तबा बैठ चुका था। उसके स्थान पर अब डीज़ल चालित चमचमाती एसयूवी थी धवल हिमालय सी। बाल अभी भी सब शेखर भाई के काले ही थे। बातों में पता चला तीन साल पहले किस्तों पर ली गई थी बस अब दो तीन किस्तें बकाया हैं। विद्यारयण्य पुरा में चले आये थे अब शेखर। आखिरी मर्तबा २००७ -०८ यहां आया था चैन्नई मैसूर शताब्दी से मंजुनाथ नगर आवास पर तब ये संगीत की दीक्षा देते थे संगीतविद
ममता -बाड़ी की बेगम टिकैत सुल्ताना उर्फ़ मल्लिकाए ज़हीन डेमोक्रेसी को समझ बैठीं आप मज़ाक , ऊंची प्रोटोकॉल से है आपा की नाक। है आपा की नाक बाट जोहे खुद पीएम , पर हो बैठी गोल स्वयं मीटिंग से सीएम। रोज़ -रोज़ यदि आप दिखाएं ,शेखी ऐसी , तो बीबी किस भाँति चलेगी डेमोक्रेसी। (कविवर ॐ प्रकाश तिवारी ) मल्लिकाए बंगाल एक ग़ज़ल कुछ ऐसी हो , बिलकुल तेरे जैसी हो , मेरा चाहे जो भी हो तेरी ऐसी तैसी हो। हमारा मानना है बेगम साहिबा अलपन वंद्योपाध्याय को कार्य मुक्त नहीं करेंगी।ना रिलीविंग चिट देंगी ना लास्ट पे सर्टिफिकेट। ऐसे में फिर एक द्वंद्व युद्ध होगा दीदी बनाम 'दीदी ओ दीदी'। अभी एक दिन बाकी है एक दिन में बहुत कुछ हो जाता है। राज पाट धन पाय के क्यों करता अभिमान , पाड़ोसी की जो दशा ,भई सो अपनी जान। जहां "आपा "तहाँ आपदा ,जहां संकट तहाँ शोक , कहे कबीर कैसे मिटे ,चारों दीर्घ रोग। विशेष :यहां 'आपा' में श्लेषार्थ है एक बड़ी बहन (दीदी )दूसरा अहंकार। पानी से पानी मिले ,मिले नीच को नीच , अच्छों को अच्छे मिलें ,मिलें नीच को नीच।